पृथ्वी का संरक्षण हेतु अपनी क्षमता अनुसार सहयोग करें – डॉ. एस.एन. झा
दुर्ग। पृथ्वी का संरक्षण हेतु अपनी क्षमता अनुसार सहयोग करना चाहिए। हमें जल, वायु, मृदा तथा ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु हर संभव उपाय अपनाना चाहिए। ये उद्गार आज शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के प्रभारी प्राचार्य डॉ. एस.एन. झा ने व्यक्त किये। डॉ. झा आज महाविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित विश्व पृथ्वी दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्गार व्यक्त कर रहे थे। रेन वाटर हार्वेस्टिंग को वर्तमान समय की नितांत आवश्यकता निरूपित करते हुए डॉ. झा ने उपस्थित सभी विद्यार्थियों एवं प्राध्यापकों से अपने-अपने घरों से रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली स्थापित करने का आग्रह किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए अतिथि सहायक प्राध्यापक डॉ. विकास स्वर्णकार ने विश्व पृथ्वी दिवस से संबंधित रोचक जानकारी प्रस्तुत की।

भूगर्भशास्त्र विभाग के डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में बताया कि विश्व पृथ्वी दिवस मनाने का आरंभ 22 अप्रेल 1970 से हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी के संरक्षण के प्रति समूचे विश्व को जागरूक करना है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष विश्व पृथ्वी दिवस की थीम हमारी पृथ्वी हमारी शक्ति रखा गया है। डॉ श्रीवास्तव ने एक क्विज के माध्यम से विद्यार्थियों से पृथ्वी से संबंधित अनेक रोचक प्रश्न विद्यार्थियों से पूछे जिसका उत्तर देते हुए अन्य विद्यार्थियों के ज्ञान में वृध्दि हुई। भूगर्भशास्त्र के अतिथि सहायक प्राध्यापक डॉ इन्द्रजीत साकेत ने बताया कि लगभग 190 से अधिक देशों में आज विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है। इसकी आज 55 वीं वर्षगांठ है। डॉ. साकेत ने पृथ्वी के संरक्षण के विभिन्न उपायों की भी विस्तार से चर्चा की।

भूगर्भशास्त्र के स्नातक स्तर के विद्यार्थी भूपेश वर्मा तथा कु झलक मिश्रा ने अपने प्रस्तुतिकरण में वनोन्मुलन, सीएफसी गैसों का प्रयोग, प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक दोहन तथा ग्लोबल वार्मिंग को पृथ्वी के लिए हानिकारक बताते हुए कहा कि सभी विद्यार्थियों को अपने-अपने स्तर पर पृथ्वी के संरक्षण हेतु प्रयास करना चाहिये। उन्होंने कहा कि हमें व्यर्थ बहते जल तथा व्यर्थ में विद्युत की खपत पर नियंत्रण लगाना चाहिये। कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि डॉ. एस.एन. झा को भूगर्भशास्त्र विभाग की ओर से स्मृति सिन्ह भेंट किया गया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ विकास स्वर्णकार ने किया।
