दुर्ग।शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के भूगर्भशास्त्र विभाग में जल संरक्षण के प्रति विद्यार्थियों के मन में भाव जागृत करने एवं सामाजिक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से विद्यार्थियों द्वारा वर्षा जल संचयन अर्थात् रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर केन्द्रित बड़ी संख्या में वर्किंग एवं स्थैतिक मॉडल तैयार किए गए यह जानकारी देते हुए भूगर्भशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. एस.डी. देशमुख ने बताया कि वर्षा जल संचयन प्रणाली को आम जनता तक पहुंचाने हेतु विद्यार्थियों द्वारा ये मॉडल तैयार किए गए है। इन मॉडल को समय समय पर दुर्ग, भिलाई के विद्यालयों एवं महाविद्यालय के विद्यार्थियों को प्रदान किया जायेगा, जिससे वे लोग अपने-अपने शैक्षणिक संस्थानों में वर्षा जल संचयन के बारे में सभी को जागरूक कर सके।

भूगर्भशास्त्र के प्राध्यापक डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव ने बताया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग मॉडल निर्माण के दौरान विद्यार्थियों को रेना वाटर हार्वेस्टिंग के प्रणाली तथा उसकी कार्यविधि एवं उससे संबंधित सावधानियां के विषय में विस्तार से जानकारी प्रदान की गयी। स्नातक स्तर के विद्यार्थियों ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर केन्द्रित प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी भूगर्भशास्त्र विभाग में जमा की। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत विद्यार्थियों में सामाजिक सरोकार की भावना जागृत करने एवं उनके कौशल विकास से संबंधित मुद्दे के कियान्वयन हेतु यह गतिविधि आयोजित की गयी। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान में पूरे भारत में मानसून सकिय है तथा देश के अनेक हिस्से बाढ़ से तथा अत्याधिक वर्षा से ग्रसित है। शोध के अनुसार वर्षा का 65 प्रतिशत हिस्सा सतह पर बहकर नदी, नालों के द्वारा समुद्र में चला जाता है। इससे किसी भी स्थान पर भूमिगत जल स्तर में वृध्दि नही हो पाती यही कारण है, कि वर्षा के जल को रोककर उसे वर्षा जल संचयन प्रणाली की सहायता से भूमिगत जल भण्डारण में वृध्दि करने की नितांत आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ में धान के खेत वर्षा के जल संचयन हेतु सबसे उत्तम साधन है।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अजय कुमार सिंह ने भूगर्भशास्त्र विभाग के इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि अन्य विभागों को भी अपने विषय के अनुरूप ऐसे व्यवहारिक प्रयास करना चाहिए जिनका सीधा संबंध समाज से हो।



