सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर को एक अहम आदेश देते हुए कहा कि अब सभी शिक्षकों को अपनी नौकरी बनाए रखने और प्रमोशन पाने के लिए टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना अनिवार्य होगा। जिन शिक्षकों की सर्विस में 5 साल से अधिक बचे हैं, उन्हें परीक्षा देना ही होगा। हालांकि, जिनकी सेवा अवधि 5 साल से कम है, उन्हें इस नियम से राहत दी गई है।

नई दिल्ली 1 सितंबर 2025। शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की गुणवत्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अब सभी शिक्षकों के लिए टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना जरूरी होगा। यह नियम न केवल नियुक्ति बल्कि नौकरी में बने रहने और प्रमोशन पाने पर भी लागू होगा।
बेंच का फैसला
जस्टिस दीपांकर दत्त और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि जिन शिक्षकों की सेवा अवधि में अभी 5 साल से अधिक शेष है, उन्हें किसी भी हाल में TET क्वालिफाई करना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो उन्हें इस्तीफा देना होगा या फिर कंपल्सरी रिटायरमेंट लेना होगा।हालांकि, जिन शिक्षकों की सेवा अवधि सिर्फ 5 साल या उससे कम बची है, उन्हें इससे छूट दी गई है।
TET की अनिवार्यता कब से?
गौरतलब है कि नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (NCTE) ने वर्ष 2010 में ही यह नियम तय किया था कि कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले शिक्षकों की नियुक्ति केवल उन्हीं में से की जाएगी जिन्होंने TET परीक्षा पास की हो। इसका उद्देश्य शिक्षकों की गुणवत्ता और छात्रों को बेहतर शिक्षा सुनिश्चित करना था।लेकिन बड़ी संख्या में पुराने शिक्षक इस नियम से बाहर थे, जिससे अक्सर विवाद खड़ा होता रहा। अब सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद मामला पूरी तरह स्पष्ट हो गया है।
अल्पसंख्यक संस्थानों पर क्या होगा असर?
कोर्ट ने यह भी माना कि सवाल यह है कि क्या राज्य सरकारें अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाने वाले शिक्षकों पर भी TET अनिवार्य कर सकती हैं? और अगर हां, तो क्या यह उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा? इस पर अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को बड़ी बेंच के पास रेफर कर दिया है, जहां इस पर विस्तार से सुनवाई होगी।
शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश शिक्षकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। इससे न केवल सरकारी बल्कि प्राइवेट और सहायता प्राप्त विद्यालयों में भी योग्य शिक्षकों की नियुक्ति और सेवा की गारंटी होगी। वहीं, कई शिक्षक संगठनों ने इस फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ इसे शिक्षा सुधार की दिशा में बड़ा कदम मानते हैं, तो कुछ का कहना है कि पहले से कार्यरत शिक्षकों को इतना सख्त विकल्प (इस्तीफा या रिटायरमेंट) देना कठोर है।