सुप्रीम कोर्ट ने कहा: NUJS कुलपति पर यौन उत्पीड़न की शिकायत समय-सीमा से बाहर, लेकिन घटना….

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय विधि विज्ञान विश्वविद्यालय (NUJS) की एक फैकल्टी सदस्य द्वारा कुलपति डॉ. निर्मल कांति चक्रवर्ती के खिलाफ दर्ज यौन उत्पीड़न की शिकायत समय-सीमा समाप्त होने के कारण खारिज की जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) के तहत अधिकतम छह महीने की वैधानिक सीमा से परे शिकायत दर्ज की गई थी।

घटना और शिकायत की समय-सीमा
शिकायतकर्ता वनीता पटनायक ने आरोप लगाया कि उनके साथ अंतिम यौन उत्पीड़न की घटना अप्रैल 2023 में हुई थी। लेकिन शिकायत 26 दिसंबर 2023 को दर्ज की गई, जो POSH अधिनियम की निर्धारित अवधि से परे थी। स्थानीय शिकायत समिति (LCC) ने समय-सीमा पार होने के आधार पर शिकायत खारिज कर दी थी।

अपील और अदालत का विचार
सिंगल जज ने अपीलकर्ता की रिट याचिका स्वीकार कर ली और मामले की पुनः सुनवाई का निर्देश दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ — जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले — ने कलकत्ता हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें शिकायत को समय-सीमा पार मानकर खारिज किया गया था।

अपीलकर्ता ने यह तर्क दिया था कि अप्रैल 2023 के बाद उसके खिलाफ की गई प्रशासनिक कार्रवाइयां, जैसे कि निदेशक पद से हटाया जाना और यूजीसी अनुदानों पर जांच, यौन उत्पीड़न का निरंतर हिस्सा हैं। परंतु अदालत ने माना कि ये कदम प्रशासनिक उपाय थे, न कि यौन उत्पीड़न की निरंतर घटनाएं।

न्यायालय का अवलोकन
अदालत ने कहा:

“अप्रैल 2023 का कथित उत्पीड़न अपने आप में एक पूर्ण कृत्य था। उसके बाद की घटनाएं स्वतंत्र प्रशासनिक निर्णय थीं और उन्हें यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता।”
अदालत ने यह भी माना कि शिकायतकर्ता ने स्वयं शिकायत दर्ज करते समय देरी की बात स्वीकार की थी और क्षमादान का आवेदन भी दिया था। इससे स्पष्ट है कि उन्होंने अप्रैल 2023 को अंतिम घटना माना।
विशेष निर्देश
हालांकि शिकायत तकनीकी आधार पर खारिज की गई, सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इस मामले का उल्लेख कुलपति डॉ. निर्मल कांति चक्रवर्ती के जीवनवृत्त (bio-data) का हिस्सा बनाया जाए और इसका पालन उन्हें व्यक्तिगत रूप से करना होगा।

खंडपीठ ने कहा, “गलती करने वाले को क्षमा करना उचित है, लेकिन गलती को भुलाया नहीं जा सकता। इसलिए यह घटना कुलपति के जीवनवृत्त का हिस्सा रहेगी।”

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