अमान्य विवाह से जन्मे पुत्र को सौतेली माँ की संपत्ति सहित पिता की संपत्ति में 5/6 हिस्से का अधिकार : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

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हैदराबाद।
हिंदू उत्तराधिकार कानून पर एक महत्वपूर्ण फैसले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अमान्य विवाह (void marriage) से जन्मा पुत्र भी अपने मृतक पिता की संपत्ति में वैध उत्तराधिकारी होगा। अदालत ने कहा कि ऐसे पुत्र को न केवल पिता की संपत्ति बल्कि सौतेली माँ द्वारा विरासत में प्राप्त संपत्ति में भी हिस्सा मिलेगा।

न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति महेश्वर राय कुंथेम की खंडपीठ ने निर्णय देते हुए कहा कि अपीलकर्ता पुत्र अपने मृत पिता की संपत्ति में 5/6 हिस्से का हकदार है, जबकि शेष 1/6 हिस्सा प्रतिवादी को मिलेगा।


मामले की पृष्ठभूमि

विवाद वेब्बुरुधति केशवराव की संपत्ति से जुड़ा था, जिनका निधन 31 मई 1990 को बिना वसीयत के हुआ था।

केशवराव का पहला विवाह चेति पुष्पावती से हुआ था, लेकिन उनसे संतान नहीं थी।

1987 में, प्रथम विवाह के रहते ही उन्होंने चेति माविन्यामति से दूसरा विवाह किया, जिससे 1988 में अपीलकर्ता बेन्नुपति नाना वैकट कृष्ण का जन्म हुआ।

मृत्यु के समय उनके परिवार में – उनकी माँ रखम्मा, पहली पत्नी पुष्पावती, और पुत्र (अपीलकर्ता) जीवित थे।


पक्षकारों के तर्क

अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि नाबालिग रहते हुए अदालत की अनुमति के बिना हुए समझौता डिक्री वैध नहीं थी। साथ ही, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 के तहत अपीलकर्ता वैध संतान माना जाएगा और इस प्रकार पिता, दादी और सौतेली माँ की संपत्ति का भी उत्तराधिकारी होगा।

प्रतिवादी ने दावा किया कि मुकदमा सीपीसी ऑर्डर 23 रूल 3A के तहत अवैध था तथा वसीयत के आधार पर उसके पास उत्तराधिकार का अधिकार है।


हाईकोर्ट का विश्लेषण

  1. समझौता डिक्री की वैधता पर – अदालत ने माना कि नाबालिग की सहमति के बिना किया गया समझौता बाध्यकारी नहीं है। अतः 1995 की डिक्री रद्द की गई।
  2. वसीयत बनाम अवसीयत उत्तराधिकार पर – प्रतिवादी वसीयत का प्रमाण पेश करने में विफल रहा। अदालत ने माना कि वसीयत से संबंधित दावा टिकाऊ नहीं है।
  3. अपीलकर्ता के हिस्से पर –

पिता (केशवराव) की संपत्ति से: 1/3 हिस्सा

दादी (रखम्मा) की संपत्ति से: 1/6 हिस्सा

सौतेली माँ (पुष्पावती) की संपत्ति से: 1/3 हिस्सा

इस प्रकार अपीलकर्ता का कुल हिस्सा = 5/6,
जबकि प्रतिवादी का हिस्सा = 1/6 (दादी से प्राप्त)।


अंतिम निर्णय

7 जुलाई 1995 की समझौता डिक्री को रद्द किया गया।

एक प्रारंभिक डिक्री पारित की गई, जिसमें अपीलकर्ता को 5/6 और प्रतिवादी को 1/6 हिस्से का अधिकारी घोषित किया गया।

निचली अदालत को इन हिस्सों के आधार पर अंतिम विभाजन डिक्री पारित करने का निर्देश दिया गया।

अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई और प्रतिवादी की क्रॉस-आपत्तियाँ खारिज कर दी गईं।

दोनों पक्षों को अपनी-अपनी लागत वहन करने का निर्देश दिया गया।

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