जानिये क्या है पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली, जिसका मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आज किया ऐलान, पुलिस कमिश्नर को रहता मजिस्ट्रेट का पावर, ….जानिये पूरे विस्तार से.

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रायपुर 15 अगस्त 2025। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने संबोधन में राजधानी रायपुर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का ऐलान किया। आखिर क्या होती है पुलिस आयुक्त प्रणाली? पुलिस आयुक्त प्रणाली के लागू होने के बाद पुलिसिंग कितनी बदल जाती है, आइये विस्तार से जानते हैं.. ।

दरअसल  पुलिस आयुक्त प्रणाली, जिसे कमिश्नरेट प्रणाली भी कहा जाता है, एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें पुलिस विभाग के प्रमुख, यानी पुलिस आयुक्त, को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत कुछ न्यायिक शक्तियां दी जाती हैं. इसका मतलब है कि पुलिस आयुक्त अपने अधिकार क्षेत्र में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए मजिस्ट्रेट की शक्तियों का भी प्रयोग कर सकता है

पुलिस कमिश्नरी के अधिकारी

पुलिस कमिश्नरी सिस्टम में ADG रैंक का अधिकारी पुलिस आयुक्त (Police Commissioner) होता है। हालांकि कभी-कभी ये IG रैंक के अफसर को भी जिम्मेदारी दी जाती है। ये इस प्रणाली का सर्वोच्च पद होता है. इसके बाद IG रैंक का अधिकारी संयुक्त पुलिस आयुक्त (Joint Commissioner of Police) होता है. जबकि DIG रैंक के अफसर अपर पुलिस आयुक्त (Additional Commissioner of Police) बनाए जाते हैं. जिनकी तैनाती क्राइम और लॉ एंड ऑर्डर के लिहाज से अलग-अलग होती है।

पुलिस कमिश्नरेट वाले जनपदों को अलग-अलग जोन में बांट दिया जाता है. फिर हर एक जोन में SSP/SP रैंक का अधिकारी पुलिस उपायुक्त (Deputy Commissioner of Police) नियुक्त किया जाता है. उसके अधीन अपर पुलिस उपायुक्त (Additional Deputy Commissioner of Police) बनाए जाते हैं, जो ASP रैंक के अधिकारी होते हैं. जबकि जिले में सर्किल और थाने की व्यवस्था सामान्य पुलिस प्रणाली की तरह ही होती है. जिसमें क्षेत्राधिकारी का पद नाम सीओ (Circle officer) के जगह सहायक पुलिस आयुक्त (Assistant Commissioner of Police) होता है। ACP के अधीन थाने के एसएचओ (SHO) आते हैं।

सीआरपीसी (CrPC) के अधिकार
इस प्रणाली में सीआरपीसी के सारे अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास होते हैं. उन्हें किसी भी मामले में जिले के डीएम से आदेश लेने की ज़रूरत नहीं होती है. पुलिसकर्मियों तबादले, लाठी चार्ज या फायरिंग के आदेश भी खुद पुलिस कमिश्नर दे सकते हैं. सामान्य पुलिस व्यवस्था में डीएम को सीआरपीसी कानून-व्यवस्था संबंधी कई अधिकार देती है, लेकिन पुलिस कमिश्नरी सिस्टम में ये सारे अधिकार डीएम की बजाय सीधे पुलिस कमिश्नर के पास होते हैं।इस प्रणाली में, पुलिस आयुक्त को सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट की कुछ शक्तियां प्राप्त होती हैं, जैसे कि निवारक गिरफ्तारी, निष्कासन कार्यवाही, और धारा 144 लागू करना।

जवाबदेही:

पुलिस आयुक्त अपने कार्यक्षेत्र में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य सरकार के प्रति जवाबदेह होता है। जिलों में शस्त्र लाइसेंस देने, बार लाइसेंस जारी करने और होटलों के लाइसेंस बनाने का अधिकार भी पुलिस कमिश्नर के पास होता है. इसके अलावा धरना प्रदर्शन की इजाजत देना, लाठी चार्ज पर फैसला करना, पुलिस बल की संख्या तय करने का अधिकार भी पुलिस के पास होता है. यहां तक कि भूमि संबंधी विवादों के निस्तारण का अधिकार भी पुलिस के पास होता है।

एकीकृत कमान:

यह प्रणाली एक एकीकृत पुलिस कमान संरचना प्रदान करती है, जिसमें पुलिस आयुक्त अपने क्षेत्र में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होता है।

लाइसेंस और अनुमति:

पुलिस आयुक्त को शस्त्र लाइसेंस, होटल या बार लाइसेंस जैसे लाइसेंस जारी करने और विभिन्न आयोजनों की अनुमति देने या न देने का अधिकार भी होता है।

संवेदनशील मामलों में शक्ति:

विशेष परिस्थितियों में, पुलिस आयुक्त को बल प्रयोग करने और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) या गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई करने का भी अधिकार होता है।

 अधीनस्थ अधिकारियों की भूमिका:

इस प्रणाली में, अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों का पदानुक्रम जिला पुलिस के समान ही होता है।

कमिश्नरी प्रणाली क्यों लागू की जाती है?

कानून व्यवस्था में सुधार:

इस प्रणाली का उद्देश्य कानून व्यवस्था को बेहतर बनाना और अपराधों को रोकना है।

अधिकारियों की जवाबदेही:

यह प्रणाली पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही बढ़ाती है और उन्हें त्वरित निर्णय लेने में सक्षम बनाती है।

संवेदनशील मामलों में त्वरित कार्रवाई:

कमिश्नरी प्रणाली संवेदनशील मामलों में त्वरित कार्रवाई करने और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती है. यह प्रणाली आमतौर पर बड़े शहरों और महानगरों में लागू की जाती है, जहां कानून व्यवस्था की चुनौतियां अधिक होती है।

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