हाईकोर्ट ने अपोलो हॉस्पिटल के चार डॉक्टरों को दी बड़ी राहत, FIR और चार्जशीट निरस्त

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपोलो हॉस्पिटल के चार डॉक्टरों को सात साल पुराने मामले में बड़ी राहत दी है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने याचिका मंजूर करते हुए उनके खिलाफ दर्ज FIR और निचली अदालत में पेश की गई चार्जशीट को निरस्त कर दिया। यह मामला वर्ष 2016 का है, जब अपोलो हॉस्पिटल में एक मरीज की मृत्यु के मामले में डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाया गया था। 25 दिसंबर 2016 को दयालबंद निवासी एक युवक को गंभीर स्थिति में  अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।मरीज मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर के कारण अगले ही दिन 26 दिसंबर को निधन हो गया। इस घटना के बाद परिजनों ने सरकंडा थाने में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में डॉक्टरों डॉ. सुनील कुमार केडिया, डॉ. देवेंद्र सिंह, डॉ. राजीव लोचन भांजा और मनोज कुमार राय के खिलाफ IPC की धारा 304A (गैर इरादतन हत्या) और धारा 201 (सबूत मिटाने) के तहत मामला दर्ज किया गया। मामले में डॉक्टरों ने वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील ओटवानी के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। याचिकाकर्ताओं की ओर से यह बताया गया कि मरीज गंभीर अवस्था में अस्पताल लाया गया था और उसकी मृत्यु मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर के कारण हुई। पोस्टमॉर्टम के बाद मृतक के विसरा को रासायनिक परीक्षण के लिए भेजा गया, जिसमें किसी प्रकार के सल्फास या अन्य संदिग्ध रसायन के अवशेष नहीं पाए गए। इसके अलावा यह भी बताया गया कि मामले में पहले सिम्स और बाद में राज्य मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया। इस बोर्ड में कार्डियोलॉजिस्ट समेत पांच मेडिकल विशेषज्ञ शामिल थे। वर्ष 2023 में मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि डॉक्टरों की ओर से कोई लापरवाही नहीं हुई। बोर्ड ने यह भी कहा कि मरीज की मौत का कारण गंभीर स्वास्थ्य स्थिति और मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर था, न कि चिकित्सकीय चूक।

हालांकि, बोर्ड की रिपोर्ट के बावजूद पुलिस विभाग के एक मेडिको लीगल विशेषज्ञ ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसके आधार पर डॉक्टरों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया। इस रिपोर्ट में मृत्युपूर्व बयान रिकॉर्ड न करने और राइस ट्यूब को संरक्षित न करने जैसी कमियों का उल्लेख किया गया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि इन कमियों का मरीज की मृत्यु से कोई सीधा संबंध है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में FIR और चार्जशीट न्यायसंगत नहीं हैं। कोर्ट ने डॉक्टरों को यह राहत दी कि उनके खिलाफ कोई आपराधिक आरोप नहीं ठहरता। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की बेंच ने स्पष्ट किया कि मेडिकल बोर्ड और विशेषज्ञ रिपोर्टों के आधार पर डॉक्टरों की कार्यवाही में लापरवाही साबित नहीं होती।

इस फैसले के बाद डॉक्टरों ने बड़ी राहत महसूस की और कहा कि न्यायपालिका ने उनके पेशेवर सम्मान और मेडिकल निर्णय की उचित सराहना की है। वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील ओटवानी ने कहा कि यह निर्णय चिकित्सकीय पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण मिसाल है और भविष्य में ऐसे मामलों में मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को प्राथमिकता देने की दिशा में मार्गदर्शन करेगा। फैसले के अनुसार, अस्पताल और डॉक्टरों की जिम्मेदारी मरीज की गंभीर स्थिति में उचित चिकित्सकीय उपचार प्रदान करना थी, और उन्होंने पूरी तत्परता के साथ मरीज का इलाज किया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी चिकित्सकीय प्रक्रिया में छोटे-मोटे तकनीकी कमियों का मरीज की मृत्यु के सीधे कारण के रूप में उल्लेख करना न्यायसंगत नहीं है।
इस मामले ने मेडिकल पेशेवरों और अस्पताल प्रशासन के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि गंभीर और जटिल स्वास्थ्य मामलों में पेशेवर निर्णयों की मान्यता न्यायालय द्वारा दी जाती है, बशर्ते कि चिकित्सकीय मानक का पालन किया गया हो। हाई कोर्ट का यह निर्णय डॉक्टरों के पेशेवर सम्मान और विश्वास को मजबूती प्रदान करता है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला अपोलो हॉस्पिटल और चिकित्सकीय समुदाय के लिए राहत देने वाला है। यह निर्णय मेडिकल पेशेवरों के लिए यह स्पष्ट करता है कि न्यायपालिका चिकित्सा विज्ञान और विशेषज्ञ रिपोर्टों के महत्व को प्राथमिकता देती है और केवल तकनीकी कमियों या संदिग्ध रिपोर्टों के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकालती।

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