
रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 27 नवंबर को भिलाई के एक रेडियोलॉजिस्ट को कथित छेड़छाड़ मामले में अग्रिम जमानत प्रदान की है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने मामले की परिस्थितियों पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि जब आरोप प्रेरित या दुर्भावनापूर्ण प्रतीत हों, तो अदालतों को आपराधिक कानून के दुरुपयोग को रोकना चाहिए।
अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता ने डॉक्टर से भ्रूण/भ्रूण लिंग संबंधी जांच की मांग की थी, जो कानूनन प्रतिबंधित है। डॉक्टर ने अपने पेशेवर दायित्वों का पालन करते हुए इस अवैध जांच से इंकार किया, जिसके बाद शिकायत दर्ज कराई गई प्रतीत होती है।
50 वर्षीय डॉक्टर को सुपेला थाना क्षेत्र में दर्ज मामले में गिरफ्तारी की आशंका थी। यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 74, 75(1)(ii) और 79 के तहत दर्ज किया गया था। नौ महीने की गर्भवती महिला ने 16 अक्टूबर को भिलाई के एक डायग्नोस्टिक सेंटर में अल्ट्रासाउंड के दौरान डॉक्टर पर अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया था। prosecution ने दावा किया था कि डॉक्टर ने परदे के पीछे आपत्तिजनक शारीरिक संपर्क बनाया, लेकिन अदालत ने केस डायरी में दर्ज सामग्री में परिस्थितियां कुछ और ही दर्शाई।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि प्रथमदृष्टया पेश किए गए तथ्यों से प्रतीत होता है कि आरोप “झूठे और प्रेरित” हैं तथा शिकायत “बाद में सोची-समझी हरकत” के रूप में सिर्फ डॉक्टर को परेशान और बदनाम करने के उद्देश्य से दर्ज हुई लगती है।
अदालत ने यह भी माना कि शिकायतकर्ता गर्भावस्था के दौरान कई बार उसी डायग्नोस्टिक सेंटर में आती रही, लेकिन कभी कोई शिकायत नहीं की। साथ ही डॉक्टर का पेशेवर रिकॉर्ड भी पूरी तरह साफ पाया गया। मेडिकल रजिस्ट्रेशन और सेंटर के लाइसेंस संबंधी दस्तावेज भी रिकॉर्ड पर प्रस्तुत किए गए।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये निष्कर्ष केवल जमानत के चरण तक सीमित हैं, लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए डॉक्टर को गिरफ्तारी से संरक्षण दिया जाना उचित है।


