साथी की मौत के बाद मिली आजादी, 8 साल बाद नसीब हुई धूप और जमीन

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रायपुर के अटारी क्षेत्र स्थित नंदनवन चिड़ियाघर में बीते आठ वर्षों से नजरबंद तीन तेंदुओं और एक लकड़बग्घे को आखिरकार जंगल सफारी में स्थानांतरित कर दिया गया है। यह स्थानांतरण तब हुआ जब कुछ दिन पहले इनमें से एक तेंदुए की मृत्यु हो गई। इन वन्यजीवों को पर्यटकों से दूर, पिंजरे में बंद कर रखा गया था, जहां उन्हें न तो प्राकृतिक जीवन मिल पा रहा था और न ही खुली हवा और धूप का अनुभव।

वन विभाग द्वारा निर्धारित दो सप्ताह की डेडलाइन के बावजूद यह प्रक्रिया चार सप्ताह बाद 26 मई को शुरू हो पाई। जब जंगल सफारी की टीम नंदनवन पहुंची, तो स्थानीय ग्रामीणों ने इसका विरोध करते हुए शिफ्टिंग को रोकने की कोशिश की। ग्रामीणों का तर्क था कि यदि सभी वन्यजीव नंदनवन से हटा दिए जाएंगे, तो यहां आने वाले पर्यटकों को देखने के लिए कुछ नहीं बचेगा। पहले से ही पर्यटकों की संख्या में कमी है और ऐसे में यह और घट सकती है।

करीब दो घंटे तक चले विरोध के बाद रायपुर ग्रामीण विधायक श्री मोतीलाल साहू ने मौके पर पहुंचकर ग्रामीणों को समझाया। उनकी मध्यस्थता से मामला सुलझा और वन विभाग की टीम को स्थानांतरण की अनुमति मिली।

सूत्रों के अनुसार, इन जानवरों को एक प्रतिबंधित क्षेत्र में रखा गया था, जहां आम नागरिकों की पहुंच नहीं थी। केवल दो वनकर्मी और कभी-कभी एक डॉक्टर ही वहां पहुंचते थे। विभाग का कहना था कि जानवर बीमार थे, इसलिए उन्हें शिफ्ट नहीं किया गया। हालांकि, यह सवाल बना हुआ है कि यदि वे बीमार थे, तो उन्हें जंगल सफारी के रेस्क्यू सेंटर में इलाज के लिए क्यों नहीं भेजा गया?

गौरतलब है कि नंदनवन के पास चिड़ियाघर संचालन का वैध लाइसेंस नहीं है। वर्ष 2016-17 में सभी वन्यजीवों को नवा रायपुर स्थित जंगल सफारी में स्थानांतरित कर दिया गया था, और नंदनवन में केवल पक्षी शेष रह गए थे। इसके बावजूद वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, *1972 की धारा 38एच का उल्लंघन करते हुए इन जानवरों को छिपाकर रखा गया।*

यह मामला न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि वन्यजीवों के अधिकारों और स्वतंत्रता पर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है। अब जबकि ये जानवर जंगल सफारी में हैं, उम्मीद की जा रही है कि उन्हें स्वाभाविक वातावरण में पुनर्स्थापित किया जाएगा।

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