बिलासपुर/धमतरी।
संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने धमतरी जिले के दुर्गेंद्र कथोलिया की हिरासत में हुई मौत के लिए राज्य सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है। अदालत ने मृतक के परिजनों को कुल 5 लाख रुपये मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभू दत्त गुरु की द्विसदस्यीय पीठ ने 6 अक्टूबर 2025 को सुनाया।
मामला और पृष्ठभूमि
रिट याचिका (आपराधिक) संख्या 373/2025 में मृतक की पत्नी दुर्गा देवी कथोलिया और माता-पिता लक्ष्मण सोनकर एवं सुशीला सोनकर ने याचिका दायर कर आरोप लगाया कि 29 मार्च 2025 को धोखाधड़ी के एक मामले में पुलिस ने दुर्गेंद्र को गिरफ्तार किया था। उसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बाद अर्जुनी थाने की पुलिस हिरासत में रखा गया, जहां मात्र तीन घंटे के भीतर उसकी मौत हो गई।
परिवार ने बताया कि शव पर करीब 30 चोटों के निशान थे, लेकिन पुलिस ने किसी अधिकारी पर कार्रवाई नहीं की।
राज्य का पक्ष और अदालत की प्रतिक्रिया
राज्य सरकार ने मौत को “प्राकृतिक” बताया और दम घुटने से हृदय-श्वसन रुकने का तर्क दिया। परंतु अदालत ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 24 पूर्व-मृत्यु चोटें पाई गईं, जो स्पष्ट रूप से शारीरिक यातना की ओर इशारा करती हैं।
न्यायालय ने कहा कि राज्य की जिम्मेदारी है कि वह हिरासत में हर व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करे। मात्र “प्राकृतिक मृत्यु” का दावा राज्य को दायित्व से मुक्त नहीं कर सकता।
संविधान और सुप्रीम कोर्ट के संदर्भ
अदालत ने अपने निर्णय में अनुच्छेद 21 — “जीवन और गरिमा के अधिकार” — की पुनः पुष्टि करते हुए कहा कि यह मामला उसका गंभीर उल्लंघन है।
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों —
नीलाबती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य (1993),
सहेली बनाम पुलिस आयुक्त (1990), और
डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997) — का हवाला देते हुए कहा कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर मौद्रिक मुआवजा दिया जा सकता है।
अदालत का आदेश
उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार विधवा दुर्गा देवी को ₹3 लाख, और मृतक के माता-पिता को ₹1-1 लाख की राशि आठ सप्ताह के भीतर अदा करे।
यदि निर्धारित समय में भुगतान नहीं किया गया तो 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना होगा। साथ ही, गृह विभाग के सचिव को आदेश अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा गया है।
न्यायालय की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश सिन्हा ने कहा—
“हिरासत में मौतें और पुलिस अत्याचार आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास की नींव को हिला देते हैं।”
अदालत ने राज्य सरकार से आग्रह किया कि डी.के. बसु दिशानिर्देशों को सख्ती से लागू किया जाए और मानवाधिकार जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएँ रोकी जा सकें।
निष्कर्ष
दुर्गेंद्र कथोलिया की मृत्यु ने पुलिस हिरासत में मानवाधिकारों की नाजुक स्थिति को उजागर किया है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का यह फैसला न केवल एक पीड़ित परिवार को न्याय दिलाता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था संविधान से ऊपर नहीं है।
अदालत ने कहा—
“हिरासत में होने वाली प्रत्येक मृत्यु मात्र आंकड़ा नहीं, बल्कि शासन की नैतिक विफलता है।”
यह निर्णय न्यायपालिका की संवैधानिक जवाबदेही और मानवीय गरिमा की रक्षा में उसकी दृढ़ भूमिका को पुनः स्थापित करता है।



