मृत्यु में सम्मान से वंचित: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने रहंगी श्मशान घाट की चौंकाने वाली उपेक्षा पर राज्य की खिंचाई की

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर जिले के रहंगी ग्राम पंचायत स्थित मुक्तिधाम की दयनीय हालत को गंभीर मानते हुए स्वत: संज्ञान लेते हुए सार्वजनिक हित याचिका दर्ज की है। यह मामला तब उजागर हुआ जब मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा स्वयं एक अंतिम संस्कार में शामिल होने मुक्तिधाम पहुँचे और वहाँ की भयावह स्थिति देखकर व्यथित हो उठे।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि मुक्तिधाम की हालत बेहद शर्मनाक है। वहाँ प्रवेश करने का रास्ता गड्ढों और पानी से भरा हुआ था जिससे काफी कठिनाई झेलनी पड़ी। पूरे क्षेत्र में झाड़ियाँ और झंखाड़ फैले हुए थे, जो सांपों और जहरीले कीड़ों के लिए सुरक्षित ठिकाना बने हुए थे। जगह-जगह कचरा, प्लास्टिक, शराब की बोतलें और इस्तेमाल की गई वस्तुएँ बिखरी पड़ी थीं। न कोई सफाईकर्मी था, न ही कचरे के लिए डस्टबिन लगाए गए थे।

न्यायालय ने यह भी पाया कि मुक्तिधाम में बाउंड्री वॉल तक नहीं है जिससे जगह की पहचान तक करना मुश्किल हो रहा था। बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ पूरी तरह नदारद थीं। न बैठने की व्यवस्था थी और न ही शौचालय। शोकसभा में शामिल लोगों को खुले आसमान के नीचे घंटों खड़ा रहना पड़ा। और सबसे अनुचित यह पाया गया कि मुक्तिधाम के बिल्कुल पास ठोस और गीले कचरे के प्रबंधन के लिए एक शेड बना दिया गया है, जिसे कोर्ट ने बेहद असंवेदनशील करार दिया।

अपने आदेश में अदालत ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 केवल जीने का अधिकार ही नहीं देता बल्कि गरिमामयी मृत्यु और अंतिम संस्कार का अधिकार भी सुनिश्चित करता है। जब कोई व्यक्ति इस दुनिया से विदा लेता है, तो उसे सम्मानजनक विदाई मिलनी चाहिए। मृत शरीर को किसी वस्तु की तरह असम्मानजनक ढंग से निपटाना न केवल अमानवीय है बल्कि यह संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ भी है।

कोर्ट ने राज्य सरकार और प्रशासन की लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाते हुए निर्देश दिया कि मुक्तिधाम को तुरंत साफ-सुथरा किया जाए, आवश्यक मरम्मत कार्य किए जाएँ, बिजली और पानी की सुविधा उपलब्ध कराई जाए और बैठने-सहारे की व्यवस्था की जाए। साथ ही, साफ-सफाई के लिए कर्मचारियों और देखभालकर्ता की नियुक्ति अनिवार्य की गई। जिला प्रशासन और पंचायत विभाग से व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल करने को कहा गया है जिसमें यह बताया जाएगा कि आगे ऐसी स्थिति न हो इसके लिए क्या रोडमैप बनाया गया है।

सुनवाई के दौरान डिप्टी एडवोकेट जनरल शशांक ठाकुर ने बताया कि जिला प्रशासन के अधिकारी उसी दिन मुक्तिधाम का दौरा करेंगे और पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा। इसके बाद न्यायालय ने विभाग को मामले में अतिरिक्त प्रतिवादी के रूप में जोड़े जाने का आदेश दिया।

मामले की अगली सुनवाई 13 अक्टूबर 2025 को होगी। उस दिन अदालत को उम्मीद है कि राज्य सरकार इस विषय पर ठोस योजना और सुधारात्मक कदमों की जानकारी प्रस्तुत करेगी।

न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह समस्या केवल रहंगी तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे राज्य के ग्रामीण मुक्तिधाम और श्मशान स्थलों में यह स्थिति आम है। यह फैसला प्रशासन और समाज दोनों के लिए संदेश है कि जीवन की तरह मृत्यु में भी गरिमा बनाए रखना राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है।

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