कवर्धा जिले में प्रशासनिक हालात पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। कलेक्टर गोपाल वर्मा ने अपने ही बंगले पर हुए प्रदर्शन के बाद खुद को असुरक्षित बताते हुए एसपी से सुरक्षा की मांग की है। गृहमंत्री के गृह जिले में कलेक्टर की सुरक्षा पर उठे सवाल अब प्रदेश की राजनीति और प्रशासन में चर्चा का विषय बन गए हैं।

कवर्धा 25 अगस्त 2025।छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले से चौंकाने वाली खबर सामने आई है। जिले के कलेक्टर गोपाल वर्मा ने एसपी को पत्र लिखकर सुरक्षा की मांग की है। यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब यह देखा जाए कि कवर्धा राज्य के गृहमंत्री का गृह जिला है। सवाल यह उठ रहा है कि अगर जिले का कलेक्टर खुद को असुरक्षित महसूस करता है, तो आम जनता की सुरक्षा कितनी सुनिश्चित है?
दरअसल, 19 मई और 15 अगस्त की रात कलेक्टर बंगले पर कांग्रेस नेता तुकाराम चंद्रवंशी अपने साथियों के साथ पहुंचे थे। रात करीब ढाई बजे हुए इस प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने प्रशासनिक लापरवाही को लेकर नाराजगी जताई। प्रदर्शन की वजह थी – बिजली आपूर्ति बाधित होना और दुर्घटनाओं में घायल जानवरों का सही इलाज न मिलना।
घटना की शुरुआत 15 अगस्त को आंधी-पानी के दौरान हुई, जब बिजली गिरने से तीन बंदरों की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गए। घायल बंदरों को वेटनरी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। फोन करने पर डॉक्टर का मोबाइल बंद मिला। यही हाल तहसीलदार और एसडीएम का भी रहा। कलेक्टर उस समय कवर्धा में मौजूद नहीं थे। इससे नाराज लोगों ने घायल बंदर को लेकर रात डेढ़ बजे कलेक्टर बंगले का घेराव कर दिया और वहीं धरने पर बैठ गए।
इस प्रदर्शन का वीडियो भी बनाया गया, जिसमें कलेक्टर और प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठाए गए। घटना की जानकारी पुलिस को मिली तो देर रात पेट्रोलिंग पार्टी मौके पर पहुंची और घायल बंदर को डॉक्टर के घर ले जाकर उपचार कराया गया।
कलेक्टर गोपाल वर्मा ने इस घटना को गंभीर मानते हुए एसपी को लिखे पत्र में सवाल किया है कि “जब रात में प्रदर्शन हो रहा था, तब पुलिस की पेट्रोलिंग पार्टी कहां थी?” उन्होंने सुरक्षा व्यवस्था की कमी को गंभीर त्रुटि बताया और बंगले के आसपास अतिरिक्त सुरक्षा की मांग की है।
कलेक्टर का यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिससे प्रशासनिक हलकों में हलचल मच गई है। अब यह मामला केवल कलेक्टर और एसपी के तालमेल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि जिले की कानून-व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।लोग कह रहे हैं कि अगर कलेक्टर जैसा जिम्मेदार अधिकारी, जो जिले का दंडाधिकारी होता है, खुद अपनी सुरक्षा को लेकर असुरक्षित महसूस करे, तो आम नागरिकों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।