
कोरबा 12 सितंबर 2025। छत्तीसगढ़ में बार और पब के बाद अब एसईसीएल की कोयला खदानों में बाउंसर को नियुक्त किया जा रहा है। सुनने में जरा अटपटा लगे, लेकिन ये हकीकत है। पूरा मामला एसईसीएल के कुसमुंडा माइंस का है। यहां भूविस्थापितों के आंदोलन का कूचलने के लिए ठेका कंपनी महिला बाउंसरों को खदान में उतार दिया। आंदोलन कर रही महिलाओं के साथ बाउंसरों के विवाद का विडियों सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद एक बार फिर एसईसीएल प्रबंधन की कार्य प्रणाली और सुरक्षा व्यवस्था सवालों के घेरे में आ गयी है
गौरतलब है कि कोरबा में संचालित एसईसीएल की कोयला खदानों में पिछले लंबे समय से भूविस्थापित अपनी मांगो को लेकर आंदोलन कर रहे है। कुछ ऐसा ही हाल एसईसीएल के कुसमुंडा कोयला खदान का है। यहां खदान से प्रभावित ग्रामीण लंबे समय से नौकरी, मुआवजा और उचित विस्थापन की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे है। खदान क्षेत्र में महिला भविस्थापितों द्वारा उत्पादन ठप्प करने के लिए आये दिन धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि कुसमुंडा खदान में मिट्टी निकालने का ठेका नीलकंठ नामक कंपनी को दिया गया है।
महिला भूविस्थापितों के आंदोलन से ठेका कंपनी का काम लगातार प्रभावित हो रहा था। लिहाजा कंपनी के लोगों ने आंदोलन कर रही महिलाओं को रोकने के लिए महिला बाउंसर खदान में उतार दिये। बुधवार को खदान से प्रभावित ग्राम जटराज और पंडनिया की महिलाएं और पुरूष अपनी मांगों को लेकर खदान आंदोलन करने पहुंचे थे। महिलाएं गाड़ियों के सामने बैठकर काम रूकवाती, इतने में कंपनी की तरफ से महिला बाउंसरों को आगे कर दिया गया। काले टी-शर्ट और जींस में पहुंची महिला बाउंसरों ने आंदोलन कर रही महिलाओं का गाड़ियों के सामने से हटाने लगी। इस दौरान भूविस्थापित और बाउंसरों के बीच जमकर विवाद भी हो गया।
ग्रामीणों ने महिला बाउंसरों का विरोध करते हुए जमकर हंगामा मचाया गया। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियों अब सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ ठेका कंपनी द्वारा किरायें पर खदान में महिला बाउंसरों को उतारे जाने को लेकर एसईसीएल प्रबंधन की कार्य प्रणाली सवालों के घेरे में है।इस पूरे घटनाक्रम को लेकर अब कई सवाल उठ रहे है। जानकार बताते है कि एसईसीएल की खदानों में जाने वाले कर्मचारियों या फिर ठेका कंपनियों के लिए कई नियम बनाये गये है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यहीं कि क्या ठेका कंपनी नीलकंठ ने खदान में उतरी महिला बाउंसरों का वीटीसी ट्रेनिंग सर्टिफिकेट बनवाया गया ?
क्या कंपनी ने महिला का कोई बी-फार्म भरा गया ? क्या नीलकंड कंपनी ने महिला बाउंसरों को उनके स्किल के हिसाब से मजदूरी तय किया ? क्या खदान में उतरने वाली महिला बाउंसरों की हाजरी एमटीके में लगायी गयी ? एसईसीएल की खदानों में केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों की तैनाती के बाद भी आखिर महिला बाउंसरों की जरूरत क्यों पड़ गयी ? ये वो सवाल है, जो एसईसीएल प्रबंधन की कार्य प्रणाली पर ना केवल सवाल उठा रहे है, बल्कि खदान क्षेत्र में ठेका कंपनी की मनमानियों को भी उजागर कर रहे है। देखने वाली बात होगी कि इस पूरे घटनाक्रम पर एसईसीएल प्रबंधन क्या एक्शन लेती है, ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।