बिलासपुर निवासी रिटायर्ड ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी नीलकमल गर्ग ने वकील रखने के बजाय खुद अदालत में अपनी पैरवी की और हाई कोर्ट में मुकदमा जीत लिया। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि उन्हें 1993 से दो अग्रिम वेतनवृद्धियों का लाभ दिया जाए और बकाया राशि पर 6% ब्याज भी चुकाया जाए।

बिलासपुर 29 अगस्त 2025। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायी फैसला सुनाया है। बिलासपुर निवासी रिटायर्ड ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी नीलकमल गर्ग ने न केवल वर्षों से लंबित अपने हक के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि वकील पर निर्भर होने के बजाय खुद अदालत में अपनी पैरवी की और केस जीत लिया
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बी. डी. गुरु की खंडपीठ ने अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि गर्ग को उनकी पीएचडी की तारीख नवंबर 1993 से दो अग्रिम वेतनवृद्धियों का लाभ मिलना चाहिए। साथ ही, सरकार को आदेश दिया गया है कि बकाया राशि पर 6 प्रतिशत साधारण ब्याज अदा किया जाए और पूरी प्रक्रिया दो माह के भीतर पूरी की जाए।
कैसे शुरू हुई लड़ाई?
- नीलकमल गर्ग की नियुक्ति 14 फरवरी 1983 को तत्कालीन मध्यप्रदेश के सरगुजा जिले में ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी पद पर हुई थी।
- सेवा के दौरान उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और 1985 में उच्च शिक्षा की अनुमति ली।
- लंबी मेहनत के बाद नवंबर 1993 में उन्होंने हिंदी विषय में पीएचडी पूरी की।
नियमों के मुताबिक, पीएचडी पूरी करने वाले सरकारी कर्मचारियों को दो अग्रिम वेतनवृद्धि मिलती है। लेकिन 1995 में जब गर्ग ने इसका आवेदन किया, तो विभाग ने इसे ठुकरा दिया।
खुद बने वकील, खुद लड़ी जंग
विभागीय स्तर पर लगातार आग्रह करने के बावजूद जब कोई फैसला नहीं हुआ तो गर्ग ने 2017 में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन 8 मई 2025 को सिंगल बेंच ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि पीएचडी की अनुमति सक्षम प्राधिकारी से नहीं मिली थी।यहां से मामला दिलचस्प हो गया—गर्ग ने वकील करने के बजाय खुद कानून की पढ़ाई की, पुराने आदेशों और फैसलों का अध्ययन किया और डिवीजन बेंच में खुद अपनी दलीलें पेश कीं।उनकी दलीलों से सहमत होकर हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि 1985 में दी गई अनुमति में पीएचडी भी शामिल थी। साथ ही, सरकार द्वारा पहले भी ऐसे मामलों में कर्मचारियों को वेतनवृद्धि दी जा चुकी है।
मिसाल बनी यह जीत
नीलकमल गर्ग की यह जीत सिर्फ उनका व्यक्तिगत अधिकार हासिल करना नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों कर्मचारियों के लिए प्रेरणा और मिसाल है, जो सेवा के दौरान उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं लेकिन विभागीय उपेक्षा के कारण अपने हक से वंचित रह जाते हैं।इस फैसले ने यह भी साबित कर दिया कि दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास से कोई भी व्यक्ति, भले ही वकील न हो, अदालत में अपनी बात मजबूती से रख सकता है और न्याय पा सकता है