सवाल कुछ पूरे से
जवाब कुछ अधूरे से
ढूंढती है जिंदगी
चुप रहने के गुनाह या
बोलने के सच
सवाल कुछ पूरे से
जबाव कुछ अधूरे से
सब कुछ यहीं है
है सब मेरे सामने
सब कुछ निकल चुका है पर
अभी बहुत कुछ जो वाकी है
तिलिस्मी से बन रहे
सवाल कुछ पूरे से
जवाब कुछ अधूरे से
सांसों की आवाजाही
मीलों के लंबे रास्ते
अक्सर पलटने को करता है मन
फिर पीछे कुछ बचा नहीं
बचा कुछ कहीं अगर
सवाल कुछ पूरे से
जबाव कुछ अधूरे से।
पहर पहर पीर की
चल रही समीर सी
ये मन चला वो मन चला
चला जहां से पार तक
मगर कहां कहां गया
ये ढूंढता ही रह गया
सवाल कुछ पूरे से
जवाब कुछ अधूरे से।
खो गया बिछौने पर
ओढ़कर क्या वक्त भी
माया नहीं काया नहीं
क्या है किसी का सत्य भी
मैं सोच सोच रह गई
कुछ सवाल पूरे से
कुछ जबाव अधूरे से
डॉ. अनुराधा बक्शी “अनु“