कांकेर घाटी को विश्व धरोहर बनाने की दौड़ में साइंस कॉलेज, दुर्ग की दो बेटियां बनीं अहम खिलाड़ी
जगदलपुर/दुर्ग।
बस्तर की अद्भुत कांगेर घाटी को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में स्थायी स्थान दिलाने के प्रयासों को नई रफ्तार मिली है। छत्तीसगढ़ शासन और भारत सरकार के संयुक्त प्रयासों के तहत गठित विशेषज्ञ समिति में साइंस कॉलेज, दुर्ग की दो प्रतिभाशाली शोधार्थी — कु. स्वप्ना गुप्ता और कु. अरुणिमा बसु रे — को शामिल किया गया है। इन दोनों ने अपने उल्लेखनीय शोध कार्यों से क्षेत्रीय भूविज्ञान को नया आयाम दिया है।
गौरतलब है कि हाल ही में यूनेस्को ने कांगेर घाटी को अस्थायी तौर पर विश्व धरोहर स्थलों की सूची में स्थान दिया है। इसे स्थायी सूची में शामिल कराने हेतु जगदलपुर में गणतंत्र दिवस पर वन विभाग कार्यालय में उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गई, जिसमें रणनीति और आवश्यक कार्ययोजनाओं पर विचार किया गया।
शोध में उत्कृष्टता:
कु. स्वप्ना गुप्ता ने हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग से ‘कांगेर घाटी क्षेत्र में कुटुबसर गुफा एवं अन्य गुफाओं की उत्पत्ति एवं विकास’ विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। उनका मार्गदर्शन साइंस कॉलेज दुर्ग के भूविज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव एवं सहमार्गदर्शक डॉ. श्रीनिवास देशमुख ने किया।
वहीं कु. अरुणिमा बसु रे वर्तमान में दलहन सागर तालाब (जगदलपुर) में जलकुंभी के दुष्प्रभावों पर शोधरत हैं और डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव के निर्देशन में कार्य कर रही हैं। ये दोनों ही प्रतिभाएं शासकीय काकतीय पीजी कॉलेज, जगदलपुर में अतिथि सहायक प्राध्यापक के रूप में भी शिक्षा दे रही हैं।
विशेषज्ञ समिति में शामिल प्रमुख सदस्य:
समिति की बैठक में वन विभाग जगदलपुर के श्री गुप्ता, कांगेर घाटी नेशनल प्रोजेक्ट के निदेशक श्री चूड़ामणि, वन विशेषज्ञ श्री अप्रितम झा, भारतीय वाइल्डलाइफ संस्थान के डॉ. भूमेश तथा भूगर्भशास्त्र के विशेषज्ञ के रूप में डॉ. स्वप्ना गुप्ता और कु. अरुणिमा बसु रे ने सहभागिता की।
सम्मान और शुभकामनाएँ:
साइंस कॉलेज दुर्ग के प्राचार्य डॉ. अजय कुमार सिंह, भूविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. एस.डी. देशमुख, शोध निर्देशक डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव तथा शासकीय काकतीय महाविद्यालय जगदलपुर के प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार और भूविज्ञान विभाग के श्री अमितांशु शेखर झा ने दोनों शोधार्थियों को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर शुभकामनाएँ एवं बधाइयाँ दी हैं।
उनका कहना है कि इन शोधकर्ताओं का योगदान न केवल कांगेर घाटी के संरक्षण में बल्कि छत्तीसगढ़ के गौरव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में भी अहम साबित होगा।