सिकल सेल एनीमिया के प्रबंधन में नई खोज: छत्तीसगढ़ के प्रोफेसरों को भारत सरकार से डिज़ाइन पेटेंट प्राप्त

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सिकल सेल एनीमिया के प्रबंधन में नई खोज: छत्तीसगढ़ के प्रोफेसरों को भारत सरकार से डिज़ाइन पेटेंट प्राप्त

दुर्ग, 8 अप्रैल 2025:
सिकल सेल एनीमिया जैसे गंभीर आनुवंशिक रोग के इलाज में एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज करते हुए, छत्तीसगढ़ के दो वैज्ञानिकों को भारत सरकार द्वारा डिज़ाइन पेटेंट प्रदान किया गया है। साइंस कॉलेज, दुर्ग में कार्यरत प्रो. मोतीराम साहू और शासकीय महाविद्यालय, गरियाबंद के डॉ. सत्यम कुमार एवं उनकी टीम ने “कॉम्पैक्ट ब्लड फिल्ट्रेशन डिवाइस फॉर रेड्यूसिंग सिकल सेल क्राइसिस विद इंटीग्रेटेड ऑक्सीजिनेशन एंड स्टेम सेल सपोर्ट” नामक उपकरण का आविष्कार किया है, जो इस बीमारी के प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।

सिकल सेल एनीमिया एक गंभीर आनुवंशिक रोग है, जिससे भारत सहित दुनिया भर में लाखों लोग प्रभावित हैं। वर्तमान में उपलब्ध उपचार जैसे रक्त आधान, हाइड्रॉक्सीयूरिया, बोन मैरो ट्रांसप्लांट और क्रिस्पर जीन थेरेपी अत्यधिक खर्चीले हैं और सीमित पहुंच के कारण हर मरीज तक नहीं पहुंच पाते।

इस पृष्ठभूमि में विकसित यह डिवाइस अत्यंत किफायती, पोर्टेबल और बैटरी-संचालित है, जो रक्त से विकृत सिकल कोशिकाओं को सूक्ष्म द्रविकी तकनीक द्वारा अलग करता है। डिवाइस रक्त का ऑक्सीजन स्तर, कोशिका गणना और अन्य महत्वपूर्ण संकेतकों की रियल-टाइम निगरानी भी करता है। यह तकनीक रोगियों को सिकल क्राइसिस के दौरान तत्काल राहत प्रदान करने में सक्षम है।

प्रो. साहू और उनकी टीम ने पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों से 3,000 से अधिक रक्त सैंपल की जांच की है। साथ ही, 300 सैंपल को जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए दक्षिण कोरिया भेजा गया, ताकि रोग से संबंधित अन्य जटिलताओं का विश्लेषण किया जा सके।

उनके अध्ययन में यह भी सामने आया कि छत्तीसगढ़ की साहू, कुर्मी, गोंड और सतनामी जातियों में सिकल सेल एनीमिया की दर चिंताजनक रूप से अधिक है। हर 100 में से लगभग 10 लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। प्रो. साहू ने कहा कि अंतर्विवाह की परंपरा इस बीमारी के बढ़ते मामलों का एक प्रमुख कारण है। उन्होंने विवाह से पहले सिकलिंग टेस्ट, अंतरजातीय विवाह और जेनेटिक काउंसलिंग को अनिवार्य करने की सिफारिश की है।

यह डिवाइस न केवल चिकित्सा क्षेत्र में एक नया विकल्प प्रदान करता है, बल्कि सामाजिक चेतना को भी जागृत करता है। वर्तमान में शोध दल क्लिनिकल ट्रायल और बड़े पैमाने पर निर्माण के लिए विभिन्न संस्थानों व उद्योगों के साथ सहयोग की तलाश में है, ताकि यह नवाचार उन लोगों तक पहुंच सके, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।

मुख्य बिंदु:

नई डिवाइस: बैटरी-संचालित, पोर्टेबल, और सस्ते उपचार का विकल्प।

काम की विधि: सूक्ष्म द्रविकी तकनीक द्वारा सिकल कोशिकाओं का फ़िल्टरिंग और रियल-टाइम स्वास्थ्य निगरानी।

शोध: 3,000 से अधिक सैंपल की जांच, 300 सैंपल को जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजा।

समाज में वृद्धि: सिकल सेल एनीमिया की दर छत्तीसगढ़ के कुछ समुदायों में अत्यधिक है, जहां हर 100 में से 10 व्यक्ति प्रभावित हैं।

सामाजिक समाधान: अंतरजातीय विवाह, सिकलिंग टेस्ट, और जेनेटिक काउंसलिंग को बढ़ावा देने की जरूरत।

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