अनावश्यक स्थगन से बचें, साक्ष्य दर्ज करने के लिए छोटी और निरंतर तारीखें तय करें: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने निचली अदालतों को निर्देश दिया

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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्य की सभी निचली अदालतों को निर्देश दिया कि वे अनावश्यक स्थगन से बचने के लिए गंभीर प्रयास करें तथा साक्ष्य दर्ज करने के लिए छोटी, निरंतर तारीखें तय करें, विशेषकर जब आरोपी हिरासत में हों।

आवेदक के वकील ने कहा कि आवेदक निर्दोष है और उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है। उन्होंने आगे कहा कि आवेदक 8 नवंबर 2024 से जेल में है, और 14 गवाहों में से अब तक केवल 3 की ही जांच की गई है, और वे सभी मुकर गए हैं। राज्य के वकील ने जमानत आवेदन का विरोध किया और कहा कि सक्षम न्यायालय के समक्ष वर्तमान मामले में आरोप पत्र दायर किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि आवेदक की पहली जमानत अर्जी इस न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दी थी कि आवेदक के संयुक्त कब्जे से जब्त किया गया 33.7 किलोग्राम गांजा यानी प्रतिबंधित पदार्थ वाणिज्यिक मात्रा से बहुत अधिक है और आवेदक इसके लिए कोई स्पष्टीकरण देने में विफल रहा है, इसके अलावा यह झूठे फंसाने का मामला नहीं हो सकता है, इस तरह, आवेदक जमानत पर रिहा होने का हकदार नहीं है।

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मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की पीठ ने कहा कि “कई मामलों में यह देखा गया है कि निचली अदालतें अभियुक्त की हिरासत में होने पर भी लंबे समय तक स्थगन देती हैं। इस तरह की प्रथा न केवल मुकदमे के समापन में देरी करती है, बल्कि भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त शीघ्र सुनवाई के मौलिक अधिकार पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इसलिए, सभी निचली अदालतों को निर्देश दिया जाता है कि वे अनावश्यक स्थगन से बचने और साक्ष्य दर्ज करने के लिए छोटी और लगातार तारीखें तय करने के लिए गंभीर प्रयास करें, खासकर उन मामलों में जहाँ अभियुक्त न्यायिक हिरासत में है, जब तक कि कोई अपरिहार्य या बाध्यकारी परिस्थिति न हो।”

इसके साथ ही न्यायालय ने कहा, “यह न्यायालय आशा और विश्वास करता है कि यदि कोई कानूनी बाधा नहीं है तो ट्रायल कोर्ट इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार महीने की अवधि के भीतर ट्रायल समाप्त करने का गंभीर प्रयास करेगा।”

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आवेदक की ओर से अधिवक्ता रविकर पटेल तथा राज्य की ओर से पैनल वकील अंकिता शुक्ला उपस्थित हुए।

संक्षिप्त तथ्य

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 483 के तहत दूसरी जमानत याचिका दायर की गई, जिसमें आवेदक को स्वापक औषधि और गनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 20-बी (11) (सी) के तहत दंडनीय अपराध के संबंध में गिरफ्तार किया गया है। सूचना के आधार पर, एक छापा मारा गया और वर्तमान आवेदक और सह-आरोपी व्यक्तियों के संयुक्त कब्जे से कुल 33.7 किलोग्राम प्रतिबंधित पदार्थ गांजा जब्त किया गया। इसके बाद, पुलिस ने आवेदक के खिलाफ एनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 20-बी (ii) (सी) के तहत दंडनीय अपराध दर्ज किया। आवेदक की पहली जमानत याचिका इस आधार पर इस न्यायालय ने खारिज कर दी कि प्रतिबंधित सामग्री, यानी 33.7 किलोग्राम गांजा, आवेदक और सह-आरोपी व्यक्ति के संयुक्त कब्जे से बरामद किया गया था। जब्त की गई मात्रा वाणिज्यिक मात्रा से बहुत अधिक है, और आवेदक इसके लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण देने में विफल रहा। यह भी कहा गया कि यह झूठे आरोप का मामला नहीं हो सकता, विशेषकर तब जब मुकद्‌द्मा पहले से ही चल रहा हो।

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